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समाज को सामाजिक संबंधों का जाल क्यो कहा जाता है?

समाज को सामाजिक संबंधों का जाल क्यो कहा जाता है? ( samaj ko samajik sambandho ka jaal kyu kaha jata h ) -

समाज-को-सामाजिक-संबंधों-का-जाल-क्यो-कहा-जाता-है
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समाज सामाजिक संबंधों का जाल इसलिए कहा जाता है कि सामाजिक सम्बन्ध समाज का निर्माण करने के साथ- साथ मनुष्य के व्यवहारों व कार्य-कलापों को सन्तुलित करते हैं।

समाज एवं सामाजिक संबधों की अवधारणा में समाज और सामाजिक समबन्धों को हम अलग अलग रूप या एक जाल के रूप में देखते है। समाज के अर्थ के सम्बन्ध में समाजशास्त्रियों के बीच काफी मतभेद है।  अभी तक कोई सर्वमान्य परिभाषा उपलब्ध नहीं है किसी ने समाज शब्द का प्रयोग व्यक्तियों के समूह के लिए किया है, तो किसी ने समुदाय के लिए | किसी ने समस्त राष्ट्र के लिए तो किसी ने समस्त मानव जाती के लिए, तो किसी ने पूरी मानव-सभ्यता के लिए किया है। 

समाज और सामाजिक सम्बन्धो की अवधारणा को मूर्त और अमूर्त दोनों रूपों में माना जाता है समाज व्यक्तिओं का समूह नहीं बल्कि व्यक्तियों के बीच पाया जाने वाला पारस्परिक सम्बन्ध होता है अर्थात जब लोग एक व्यवस्था में बांध जाते है, तो उस व्यवस्था को समाज कहते है | 

अब आपके मन में एक सवाल होगा की समाज, सामाजिक संबंधों का जाल है यह अबधारणा किसकी किसकी होगी और या समाज, सामाजिक संबंधों का जाल होता है यह किसने कहा होगा? 

>>>>यह प्रसिद्ध कथन आर. एम. मैकाइवर एवं सी. एच. पेज ने कहा था।  

उनके अनुसार समाज रीतियों एवं कार्यप्रणलियों, अधिसत्ता, एवं पारस्परिक सहयोग, अनेक समूहों एवं विभाजनों, मानव व्यवहार के नियंत्रण एवं स्वतंत्र व्यवस्था है, जिसे हम समाज कहते है और इसी कारण समाज को सामाजिक संबंधों  का जाल कहा जाता है। ( samaj ko samajik sambandho ka jaal kyu kaha jata h ) और निरंतर परिवर्तनशील है।  
समाज एवं सामाजिक संबंधों के जाल को विरतृत रूप में समझने के लिए हमे समाज को समझना होगा यहाँ सामाजिक संबंधों से तात्यपर्य व्यक्तियों के उन विशेष उद्देश्य को पूरा करने के लिए की जाती है। हम समाज में सामाजिक संबंधों को एक समुदाय के रूप में महशूश करते है या हम समुदाय के रूप में रहते है और हम संबंधों को एक जाल के रूप में देखते है।  जैसे कोई व्यक्ति समाज में अपनी जैविक अथवा सामजिक आवयशकताओं को पूरा करने के लिए किसी दुसरे व्यक्ति के साथ कोई क्रिया कर रहा है, तब ऐसी क्रिया के परिणामस्वरूप स्थापित होने वाले संबंधों को सामाजिक समबन्ध कहेंगे और इसे ही सामाजिक संबंधों का जाल कहा जाता है। 

*सामाजिक संबंधों के जाल का निर्माण :----

इन समाजिक संबंधों के जाल का निर्माण समाजिक अन्तः क्रियाओं से होता है। सामाजिक अन्तः क्रिया जिससे समाज में सामाजिक सम्बन्ध जाल के रूप में नज़र आते है वह तीन प्रकार के होते है।  

*व्यक्ति-व्यक्ति के बीच 
*व्यक्ति-समूह बीच 
*समूह-समूह के बीच 

इन तीन स्तरों  में समाज के सामाजिक सम्बन्ध अपनी दैनिक क्रियाओं का आदान-प्रदान करते है, उनके परिणामस्वरूप ही सामाजिक संबंधों का निर्माण होता है होता है। इन संबंधों के परिणामस्वरूप ही समाज का निर्माण होता है और इन क्रियाओं के आधार पर ही हम कह सकते है कि समाज को सामाजिक संबंधों  का जाल कहा जाता है। 


समाज और सामाजिक सम्बन्ध को कुछ इस तरह भी समझा जा सकता है--

क्या आजकल टूटते रिश्तों से 
किसी को मलाल है?

आज तो हर इंसान की बिगड़ी हुई चाल है 
कहा तो यहाँ तक जाता है कि 
परिवार में बड़े-बुजुर्ग अब
बच्चों के सामने गलती नहीं दाल है। 

और हाँ,
ऐसा हमारे देश का ही नहीं 
पुरे विश्व का हाल है..... 
इसीलिए समाज सामाजिक संबंधों का जाल है 
पर खड़ा हो गया सवाल है....?
 
[Note- These poem lines are copyright from Shishupal Prajapati Blog.] 

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